प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर-
वैदिक कालीन राजनीतिक संगठन की सबसे छोटी इकाई कुल या परिवार थी जिसका प्रमुख कुलप होता था। कई कुलों से मिलकर ग्राम बनता था जिसका प्रमुख ग्रामीण होता था। कई ग्रामों से मिलकर विशः बनता था जिसका प्रमुख विशपति होता था और कई विशों के मिलने से जन बनता था जिसका प्रमुख राजा होता था। राजा को जनस्यगोपा या जन का प्रमुख कहा गया है। राजन का पद वंशानुगत हो चुका था फिर भी राजन के हाथ में असीमित अधिकार नहीं था क्योंकि उसे कबायली संठनों से सलाह लेनी पड़ती थी। यही से राजा के राज्याभिषेक की प्रथा चल पड़ी। ऋग्वेद से पता चलता है कि राज्याभिषेक के अवसर पर राज्य के प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित रहते थे। राजन पर नियन्त्रण का कार्य दो संस्थाएँ सभा और समिति करती थीं। हालाँकि ऋग्वेद की सबसे प्राचीन संस्था विदथ थी। एक और संस्था 'गण' का भी उल्लेख है। राजा पर नियन्त्रण का कार्य सभा और समिति करती थीं। इसमें भी समिति का राजा के चुनाव में ज्यादा योगदान होता था। यह कबीले की आम सभा थी। समिति के प्रमुख को ईशान कहते थे। सभा मुख्य रूप से वृद्ध जनों एवं कुलीन व्यक्तियों की संस्था थी। ये सभी संस्थाएँ जन या कबीले के सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक मामलों पर विचार-विमर्श करती थीं। ऋग्वेद में बलि शब्द का उल्लेख मिलता है, जो प्रजा द्वारा राजा को स्वेच्छा से दिया जाने वाला उपहार था। राजा इसके बदले उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता था। इस समय किसी प्रकार की कर व्यवस्था प्रचलित नहीं थी। ऋग्वैदिक जन विश में, विश ग्राम में और ग्राम कुल या गृह में विभाजित थे।
राजा के प्रमुख पदाधिकारियों में पुरोहित, सेनानी, ग्रामीण, सूत (रथ हाँकने वाला), रथकार और कर्मरा थे। अन्य पदाधिकारियों में पुरप, स्पर्श, और दूत का उल्लेख मिलता है। उपस्ति एवं इभ्य नामक अधिकारी राजा के व्यक्तिगत सेवक थे।
इन पदाधिकारियों में पुरोहित सर्वश्रेष्ठ थे। ये राजा के पथ-प्रदर्शक, शिक्षक, मित्र एवं दार्शनिक थे। ऋग्वैदिक पुरोहितों में प्रमुख वशिष्ठ, विश्वामित्र एवं देवापि थे। पुरोहित, राजा के साथ युद्ध में भी जाता था तथा उसके विजय की कामना करता था।
सेनानी का स्थान पदाधिकारियों में दूसरा था। ऋग्वेद के समय राजा के पास कोई नियमित या स्थाई सेना नहीं होती थी।
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